एस्प्रिन दुनिया की सबसे पहली ड्रग है जो पौधे से सिंथेसाइज्ड की गई थी एस्प्रिन का नाम ऐसीटाइल सैलिसिलिक एसिड है यह है व्हाइट विलो नामक पौधे की छाल से निकाला गया था। व्हाइट विलो पौधे की छाल का प्रयोग प्राचीन यूरोप ,चीन सीरिया व मिस्र में दर्द निवारक व बुखार को कम करने के लिए सदियों से प्रयोग किया जाता रहा था। इसके उपयोगों के बारे में हिप्पोक्रेट्स ने भी बताया है।
इस पौधे की छाल का सक्रिय अर्क, जिसे सैलिसिन कहा जाता है, जिसका लैटिन नाम सैलिक्स है। 1828 में एक फ्रांसीसी फार्मासिस्ट हेनरी लेरौक्स और एक इतालवी रसायनज्ञ रैफेल पिरिया द्वारा इसे क्रिस्टलीय रूप में पृथक किया गया था, जो तब सैलिसिलिक एसिड को इससे अलग करने में सफल रहे।  सैलिसिलिक एसिड, एस्पिरिन की तरह, सैलिसिन का एक रासायनिक व्युत्पन्न है।
1853 में, रसायनज्ञ चार्ल्स फ्रेडेरिक गेरहार्ड्ट ने पहली बार एसिटाइलसैलिसिलिक एसिड का उत्पादन करने के लिए एसिटाइल क्लोराइड के साथ दवा सोडियम सैलिसिलेट का इलाज किया।  अगले 50 वर्षों के लिए, अन्य रसायनज्ञों ने इसकी रासायनिक संरचना की स्थापना की और अधिक कुशल उत्पादन विधियों को तैयार किया। 
आज एस्प्रिन का उपयोग दर्द निवारक के रूप में तो किया ही जाता है बल्कि इसका उपयोग ब्लड थिनर यानी कि खून को पतला रखने के लिए भी किया जाता है आज यह दवा हृदय रोगियों व स्ट्रोक के रोगियों को भी थोड़ी मात्रा में दी जाती है ताकि उनका खून पतला रहे और उनको हार्टअटैक क्या स्टॉक ना आए कुछ नए शोधों में यह भी पता चला है कि इस दवा को लेने से कैंसर का भी खतरा कम हो जाता है।