स्वास्थ्य एवं सौन्दर्य सुरक्षा में योग का
महत्त्व-
योग द्वारा शरीर के समस्त अंग प्रत्यंग सुचारू
ढंग से कार्य करते हैं। वे सशक्त तथा सुदृढ़ होते
हैं। योग आसनों से स्नायुबन्ध (लिगमेन्ट्स) रीढ़
की हड्डी की स्रायु माँसपेशियाँ, धमनियाँ तथा
शिराएँ लचीले सशक्त एवं सुदृढ़ होते हैं । संधियों,
स्रायु तथा धमनियों को कठोर बनाने वाले तत्त्व,
कॉलेस्ट्रॉल (एल. डी. एल.) यूरिक एसिड आदि
नियंत्रित होते हैं। ऐच्छिक मांसपेशियाँ, अस्थिसंधियाँ
विशेष रूप से हाथ, पैर, छाती व कन्धे की
मांसपेशियाँ समानुपात में विकसित होकर उन्हें
सुडौल, सुन्दर, सुदृढ़, सशक्त एवं स्वस्थ बनाती
है। आम आदमी के जीवन में विवेक (ज्ञान) तथा
संवेग (आचरण) में संतुलन नहीं रहता है। विवेक
गलत कार्य में सहयोग नहीं देता है, परन्तु संवेग
(क्रोध, लोभ, ईर्ष्या व द्वेषादि) के वशीभूत होकर
व्यक्ति गलत कार्य कर बैठता है जिसका दुष्परिणाम
स्वास्थ्य एवं सौन्दर्य पर होता है।
योग क्रियाओं द्वारा रीढ़ तथा मस्तिष्क के
नायु विशेष रूप से प्रभावित होते हैं फलत: संवेग
स्वत: नियंत्रित होने लगता है,स्वास्थ्य एवं सौन्दर्य
खिलने लगता है। प्राकृतिक तथा योग चिकित्सा
में समस्त रोगों का कारण गलत आहार-विहार एवं
चिन्तन का कारण शरीर में एकत्रित विजातीय
विषाक्त पदार्थ हैं। यह विजातीय पदार्थ शरीर के
जिस अंग से निकलता है उस अंग के नाम पर रोग
का नामकरण कर दिया जाता है। जैसे विकार
त्वचा से निकलता है तो चर्म रोग, उदर से निकलने
पर उदर रोग (कोलाइटिस, गैस्ट्राइटिस), नाक से
निकलने पर जुकाम (सायनोसाइटिस) कहते हैं।
इन सभी रोगों का कारण एक ही है- विजातीय
पदार्थ। चेहरे से निकलने पर मुंहासे आदि होते हैं।
विजातीय पदार्थ रक्त तथा लिम्फ को प्रदूषित कर
देता है, रोग प्रतिरोध क्षमता को कम कर देता है।
इस दुष्परिणाम स्वरूप स्वास्थ्य एवं सौन्दर्य दोनों
ही खत्म हो जाते हैं।
योगासनों द्वारा रक्त प्रवाह तीव्र होता है।
विजातीय पदार्थों का निष्कासन बढ़ जाता है।
यौगिक आसनों में स्नायविक या नाड़ी शक्ति सतत्
प्राप्त होने से आसनों के बाद शरीर फूल की तरह
हल्का, स्फूर्तिवान तथा मन शान्त रहता है। आसन 
सिम्पेथेटिक तथा पैरासिम्पैथेटिक नर्वस सिस्टम
पर नियंत्रक एवं संतुलित प्रभाव डालकर शरीर
और मन को स्वस्थ बनाता है। यौगिक आसनों में
0.8 से 3 कैलोरी प्रतिमिनट शक्ति खर्च होती है।
विश्राम की स्थिति में 0.9 से 1 कैलोरी शक्ति प्रति
मिनट खर्च होती है। अत: कम शक्ति लगाकर
ज्यादा से ज्यादा स्वास्थ्य एवं सौन्दर्य की प्राप्ति
आसनों द्वारा ही संभव है।
आसनों से हदय, फेफड़े, नाड़ी तथा अन्त:
स्रावी ग्रंथियाँ समस्त अंगों के मध्य सुरताल बना
रहता है। सर्वांगासन, हलासन, कर्णपीड़ासन तथा
शीर्षासन की स्थिति में इनवर्टेड पोजीशन ।
(गुरुत्वाकर्षण) के कारण थायरॉयड, पैराथॉयरायड,
पिटयुटरी तथा पिनियल की तरफ रक्त संचार तीव्र
होता है। उन्हें भरपूर पोषण मिलता है तथा उनकी
मालिश अच्छी तरह होती है। हमारे शरीर में
हजारों मेरिडियन प्वाइंटस रिफ्लेक्स स्पॉट जोन हैं
जो शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को सीधे
प्रभावित करते हैं। शरीर में दिव्य जैव विद्युत ।
चुम्बकीय प्राण ऊर्जा का संचार एवं नियंत्रण इन
केन्द्रों द्वारा होता है। आसनों के प्रभाव से ये केन्द्र
सक्रिय एवं नियंत्रित होते हैं, फलत: इसके प्रतिवर्त।
प्रभाव (रिफलेक्स एक्टीविटी इफेक्ट) से समस्त
अंगों की प्रतिरोध क्षमता बढ़ती है। वे स्वस्थ एवं
सुडौल होते हैं।
आसन, प्राणायाम तथा अन्य यौगिक क्रियायें
अंतरिक्ष में होने वाले अंतरिक्षीय बीमारियों चक्कर
आना, मांसपेशियों में ऐंठन, सिर दर्द, इत्यादि से
लोहा लेने में भी सक्षम है। अंतरिक्ष में जीरो
ग्रेविटेशनकंडीशन के कारण शारीरिक प्रक्रियायें
उथल-पुथल हो जाती हैं। यौगिक क्रियाओं से
शरीर की इस उथल-पुथल प्रक्रिया को सहन करने
की क्षमता बढ़ती है। योग अंतरिक्ष में भी स्वास्थ्य
एवं सौन्दर्य को बनाये रखने में सक्षम है। इस तथ्य
को भारत के प्रथम अंतरिक्ष यात्री श्री राकेश शर्मा
ने अपने प्रयोगों से सिद्ध कर दिखाया है।
इलेक्ट्रोमायोग्राफिक रिकार्डिंग (इ. एम.
जी.) एलेक्ट्रोएन्सीफेलोग्राम (इ. इ. जी.)
इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (इ. सी. जी.) तथा अन्य
विभिन्न कम्प्युट्राइज्ड मशीनों द्वारा माँसपेशियों की
क्रियाशीलता, लचीलापन, माँसपेशीय दबाव,
सहनक्षमता, परिवर्तन, फेफड़ों की वायटल
कैपेसिटी, हदय नियंत्रण, रक्तदाब, रक्त घटकों में
परिवर्तन, बाह्य स्रावी एवं अन्तःस्रावी ग्रंथियों की
क्रियाशीलता, स्नायु संस्थान, उत्सर्जन संस्थान एवं
मस्तिष्क तरंगों तथा व्यक्ति के सामाजिक पारिवारिक
एवं व्यावसायिक सम्बन्धों पर यौगिक क्रियाओं के
प्रभाव का अध्ययन किया गया है। इन शोध
अध्ययनों के अनुसार विविध यौगिक क्रियाओं के
सम्यक् प्रयोग से प्रत्येक अंग स्वस्थ, सुडौल,
सुदृढ़, सशक्त एवं सुन्दर होते हैं। नेत्र, नासिका,
कर्ण, कपोल उच्चारण (कण्ठ), स्मरण, बुद्धि,
घृति, मेधा, ग्रीवा, हस्तांगुली, करतल, करपृष्ठ,
कलाई, भुजबल्ली, कोहुनी, भुजबन्ध, बाहुमूल,
कन्धा (स्कन्ध), वक्षस्थल, उदर, कटि, जंघा,
जानु, पिण्डली, गुल्फ, टखना, पादतल, पादपृष्ठ,
पादांगुली यानि समस्त अंगों के विकास, स्वास्थ्य,
सुडौलता एवं सौन्दर्य के लिए हमारे प्राचीन
वैज्ञानिक-ऋषियों ने किया है। इन यौगिक क्रियाओं
को किसी विशेषज्ञ के निर्देशन में भली-भाँति
सीखकर दैनिक अभ्यास करने से व्यक्ति आजीवन
स्वस्थ एवं सुन्दर बना रहता है।