3. अडूसा

(वासक)

औषधीय गुण

अडूसा के सुखाए हुए पत्ते औषधि में काम आते हैं।

पत्तों में वासीसीन नामक एल्केलाइड तथा वाष्पशील तेल होता है। अडूसा

प्रधानतः अपने कफ निस्सारक गुण के कारण प्रसिद्ध है। इसका शरबत, रस या अर्क

प्रयोग होता है। इसके सेवन से बलगम या कफ पतला होकर सुविधा से निकल जाता

है। इस कारण यह खांसी, बलगम, दमा तथा श्वास नली की सूजन (ब्रोंकाइटिस) में

लाभप्रद है।

अडूसा में कफ निस्सारक गुण इसलिए है क्योंकि यह श्वास नली की ग्रंथियों को

उत्तेजित करती है; किंतु अधिक मात्रा में सेवन करने से यह हानिकारक है और इससे

अत्यधिक व्याकुलता एवं वमन हो सकती है।

हाल ही में किए गए परीक्षणों में वासक की उपयोगिता की पुष्टि हुई है। जम्मू

स्थित रीजनल रिसर्च लैबोरेटरी में यह खोज की गई है कि इससे वासीसीन नामक पदार्थ

प्राप्त होता है जो प्रसव संबंधी रोगों में प्रयोग होता है तथा इसमें गर्भपात के गुण हैं।

अन्य सूचना

भारत के कई प्रांतों में विभिन्न जनजातियां इस पौधे के पत्ते मलेरिया हेतु प्रयोग करती

हैं। अतः इस पर आगे शोध उपयोगी हो सकता है।

अन्य उपयोग

अडूसा के पत्ते हरी खाद की तरह प्रयोग किए जाते हैं। इनसे एक पीला रंग भी प्राप्त

होता है। क्योंकि पत्तों में कुछ एल्केलाइड होते हैं, इसलिए इन पर फफूंदी तथा कीड़े

अधिक नहीं लगते। इस कारण पत्ते फलों को पैक करने तथा उनके भंडारघर में

बिछाने आदि के काम आते हैं। अडूसा के पत्तों में दुर्गंध होती है और प्रायः पशु इन्हें

नहीं खाते। इस कारण जिन क्षेत्रों में कटी हुई भूमि के सुधार की योजनाएं चल रही

हों, वहां पर लगाने के लिए यह पौधा उपयोगी है।

 

वैज्ञानिक (लैटिन) नाम, कुल, अन्य नाम तथा विवरण

वैज्ञानिक नाम : जुस्टीसिया आढाटोडा (Justicia AdhatodaL.)

(अस्वीकृत नाम : आढ़ाटोड़ा जेइलानिका, आ. वासिका)

(कुल- अकैंथेसिए)

 

अन्य नाम

: हिंदी-बांसा, वासिका

संस्कृत- वासक

असमिया- बहाका, हेरबुक्षा, तीशाए

कन्नड़- आइसोगेगिडा

गुजराती- अर्टूसी, अल्टूसो, धावी-अरडूसी

तमिल- अड़ादोरई, अड़ाथोरई

तेलुगू- अड़ासरमु

बंगला- वासक

मराठी- अदूल्सा

मलयालम- आडलोटकम

(दिल्ली- पियाबांसा)

वर्णन

यह एक-दो मी. ऊंचा सदाहरित पौधा होता है। इसकी शाखाएं हल्के पीले-से रंग की

अत्यंत विभाजित व घनी होती हैं। इसके पत्ते बड़े और लंबोतरे होते हैं। फूल सफेद

होते हैं; उनकी पंखुड़ियों (दल) पर गुलाबी या बैगनी रंग की लाइनें-सी होती हैं। फूल

घनकी, छोटी स्पाइकों में लगते हैं। स्पाइकों के डंठल पत्तों से घने होते हैं। स्पाइकों पर

पत्तों के आकार के छोटे-छोटे सहपत्र होते हैं, जिन पर घनकी मोटी शिराएं (नसे) होती

हैं। इन सहपत्रों के कारण अडूसा के पौधों को प्रायः दूर से ही पहचाना जा सकता है

अडूसा के फल एक छोटी-सी संपुटिका की भांति होते हैं, जिनमें चार बीज होते हैं।

प्राप्ति-स्थान

अडूसा के पौधे भारत में सभी मैदानों तथा तलहटी क्षेत्रों में पाए जाते हैं। यह प्रायः

नगरों (आबादियों) के आसपास अधिक होते हैं।