4. अतीस

(एकोनाइट)

आकोनीटुम जाति

अकोनाइट (कुल- रैननकुलेसिए) एक सुपरिचित वनौषधि है। इसके प्रकंद विषैले

होते हैं, किंतु नियमित मात्रा में सेवन करने से इनमें औषधीय गुण होते हैं। ब्रिटेन में

आकोनीटुम फेरॉक्स (Aconitum ferox Ser. (बच्छनाग काला)) मान्य औषधि है।

यह जाति तो भारत में नहीं होती, किंतु इसके वंश की अन्य जातियां पाई जाती हैं, जो

उतनी ही उपयोगी हैं। इनमें से दो का वर्णन नीचे किया गया है।

अतीस (वैज्ञानिक नाम : आकोनीटुम हेटेरोफील्लुम Aconitum heterophyllum

all. कश्मीरी-अतीस, अतिविष, पोदिस)।

यह एक छोटा-सा पौधा है जो उत्तर-पश्चिमी हिमालय में 2,000 से 4,000 मी.

ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाया जाता है। अतीस के प्रकंद ज्वर एवं ज्वर के बाद की

दुर्बलता दूर करने के लिए उपयोगी बताए जाते हैं। अतीस में बलवर्धक गुण तो

अवश्य हैं, किंतु ज्वरनाशक के रूप में इसकी मान्यता अधिक नहीं है। यह अतिसार

व पेचिश में भी उपयोगी है।

बनबलनाग (वैज्ञानिक नाम : आकोनीटुम कासमांथुम Aconitum chasmanthum

Stapf.)

यह पौधा भी उसी क्षेत्र में पाया जाता है जहां अतीस होता है। यद्यपि इस पौधे

के प्रकंदों में ब्रिटेन वाले अकोनाइट से उपयोगी तत्त्वों की मात्रा लगभग दस गुना

अधिक होती है, फिर भी उनकी क्षमता उतनी नहीं होती। ब्रिटेन वाली जाति के स्थान

पर बनबलनाग प्रयोग करने के लिए उपयुक्त बताया जाता है।

अन्य जातियां

इनके अतिरिक्त दूधिया विष (वैज्ञानिक नाम : आकोनीटुम डीनार्रहीजुम Aconitum

deinorrhizum Holmes ex Stapf. कश्मीरी-सफेद विषमोहरा) तथा कुछ अन्य जातियां भारत में मिलती हैं। उनकी उपयोगिता के विषय में अधिक ज्ञात नहीं है।

बाजार में अकोनाइट नाम से जो औषधियां बिकती हैं, प्रायः उनमें कई जातियों के प्रकद मिले रहते हैं।

अकोनाइट में जो एल्केलाइड होते हैं, वे प्रायः अत्यंत विषैले होते हैं और औषधि में उनका सेवन अत्यंत निर्धारित मात्रा में सावधानी से किया जाता है, अन्यथा नाना प्रकार के हानिकारक प्रभाव उत्पन्न होने का भय रहता है। इसलिए आजकल इस औषधि का प्रयोग केवल तंत्रिकाशूल (न्यूरेलजिया) या संबंधित रोगों में बाहरी लेप आदि में करते हैं। इसका सेवन नहीं किया जाता।