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ताड़ आसन या ताड़ासन


ताड़ासन- ताड़ासन को समस्थिति भी कहते हैं। ताड़ का अर्थ होता है पहाड़। ताड़ एक
प्रकार का लम्बा पेड़ भी होता है। पहाड़या ताड़ पेड़ की तरह स्थिर निश्चल सीधा खड़े रहना ही ताड़ासन कहलाता है। यह दो प्रकार से किया जाता है।
प्रयोग- अंग विन्यास- पैरों को मिलाकर खड़े हो जायें। ग्रीवा को सीधा रखें। दोनों पंजे एड़ी को मिलाकर पादाँगुलियों को जमीन पर फैला दें। घुटने नितम्ब तथा जंघा की मांसपेशियों तथा रीढ़ को ऊपर की ओर तानते हुए खीचें। उदर अन्दर,छाती बाहर तथा मेरुदण्ड को सीधा रखें।दोनों पैरों पर समान भार रखें। धीरे-धीरे श्वास भरते हुए तथा पंजे के बल खड़े होते हुए हाथों को ऊपर ले जायें। हथेलियों को अलग-अलग रखते हुए अथवा मिलाकर ऊपर
ले जायें। सारे शरीर को ऊपर की ओर खीचें। श्वास छोड़ते हुए पूर्व स्थिति में आ जायें। समय 1 से 3 मिनट में कई बार क्रिया दोहरायें।
दूसरी स्थिति में हथेलियों को जंघा से 7 इन्च की दूरी पर रखें। हथेलियाँ जंघा की ओर तथा रीढ़ ग्रीवा सारा शरीर सीधा रखें। इसे खड़गासन भी कहते हैं। समय 1 से 5 मिनट । उदर अन्दर, छाती बाहर तथा दृष्टि सामने रखें।
प्रभाव तथा लाभ- इसके अभ्यास से शारीरिक संतुलन में वृद्धि होती है। गलत अंग विन्यास सही होता है। शरीर लम्बा,सुडौल, सुन्दर एवं स्वस्थ तथा अंग विन्यास सही एवं आकर्षक होता है। शारीरिक एवं मानसिक शक्ति,स्फूर्ति, सहन एवं प्रतिरोध क्षमता तथा स्मरण शक्ति
में वृद्धि होती है। प्रमाद एवं सुस्ती दूर होती है। घुटने, नितम्ब पादाँगुलियों, जंघा की माँसपेशियों, स्नायु एवं लिगमेन्ट्स सुदृढ़ एवं सशक्त होते हैं। ये अंग सुन्दर एवं सुडौल होते हैं।