Skip to main content

नक्स वोमिका के चमत्कार Nux Vomika


नक्स वोमिका (Nux Vomica)
यह औषधि उन व्यक्तियों के लिए अत्यन्त उपयोगी है जो स्वभाव से ईर्ष्यालु, जरा-सी बात से उत्तेजित या क्रोधित हो जाने वाले और दूसरों को नुकसान पहुँचाने की इच्छा रखते हैं । जो लोग बुद्धिजीवी हैं या देर तक बैठे रहकर कार्य करते रहते हैं | अत्यन्त असहिष्णु, जरा-सी बात पर चिढ़ जाने वाले, जरा-सी आवाज होते ही भयभीत
होने वाले तथा जो गंध से गश खा जाते हैं । झटका, ऐंठन, मरोड़, छूने मात्र से ही रोग-वृद्धि —तेज ताप वाले ज्वर में भी जिन्हें जाड़ा लगे, शरीर को जरा-सा खोलते ही ठंड का अनुभव हो, शरीर काँपने लगे ।
मुख अत्यधिक लाल हो जाए, उत्तेजक पेटेण्ट औषधि तथा नशीली वस्तु लेने के आदी, विलासी या फिर व्यर्थ के विचार करने वाले ।
मल त्यागने की बार-बार इच्छा, परन्तु उसके उपरान्त भी मल त्याग का मन करता हो, मल निकलने के बाद कुछ राहत ।
रोग वृद्धि की अवस्था—कपड़े उतार कर फेंकना, मानसिक परिश्रम करने वाला व्यक्ति, भोजन के पश्चात, ठंडी वायु, शुष्क मौसम या उत्तेजक पदार्थ के सेवन से प्रातः नौ बजे-रोग लक्षण बढ़ जाना, आर्द्र मौसम में, नंगे रहने से, कपड़े ओढ़ने से, मल त्याग के उपरान्त कुछ शान्ति ।
ऐंठन (साधारण चोट से लेकर झटका लगने तक) सहनशीलता की कमी, अप्राकृतिक रूप से तेजी पकड़ना या काँपना इस दवा की तीन विशेष बातें है।
चिंता, चिड़चिड़ी अवस्था, आत्म-हत्या करने को मन करना परन्तु मरने से भयभीत होना, शाम के समय तेज नींद आना, सोने के वख्त से घंटों पहले नींद की तेजी, तीन या चार बजे आँख खुल जाए । एक या दो घंटे तक नींद न आना या जाग्रतावस्था में
पड़े रहना, उसके बाद प्रातः देर तक सोते रहना ।
प्रातः जाग जाने पर शरीर में थकावट, आलस, निर्बलता का अनुभव, प्रायः कष्ट कम नहीं होता है, इसके साथ बहुत-सी शिकायतें रहती हैं ।
पाकाशय–खना खाने के एक या दो घंटे के बाद पेट में दबाव की दशा जैसे पेट भारी हो (खाने के पश्चात्, केलिबाई, नक्स-मस्केटा) ।
ऐसी ऐंठन, जिसमें बेहोशी न हो (स्ट्रिकनिया) क्रोधी, उद्वेग, छूने या हिलने-डुलने कब्ज की शिकायत, बारी-बारी से अतिसार या पतले दस्त होना (एण्टिम क्रूड) ।
ऋतु-निश्चित समय से काफी पहले मासिक धर्म का होना, अधिक देर तक ऋतुस्राव बना रहे तथा इसके साथ ही अन्य प्रकार के कष्टों का बढ़ जाना । इस समय मिल रहा हो तो नक्सवोमिका गुणकारी है । प्रातःकाल सल्फर देने से विशेष लाभ होता की व्यवस्था में रात को सोते समय, जब मन और शरीर को कुछ शान्ति तथा विश्राम
डॉ० कनस्टेनटाइन (Dr. Constantine Heving) ने ये विशेष लक्षण बताए हैं.
"इस औषधि की आवश्यकता उस समय पड़ती है जब खाने के पदार्थ में: हो, विशेष रूप से सोंठ, काली मिर्च आदि की । यह उन व्यक्तियों के लिए भी लाभकारी है जो कडुवी दवा तथा तरह-तरह की जड़ी बूटियों की गोलियाँ खाकर अपने शरीर का कमजोर कर चुके हैं ।"
इन दवाओं का प्रयोग आजकल जन साधारण खूब करने लगे हैं । यह बात सच है कि नक्सवोमिका ऐसी हालत में अधिक लाभदायक सिद्ध हुई है । सत्यता तो यह है कि इससे उन्हीं लोगों को लाभ पहुँचता है जिन लोगों ने ऐसी दवाएँ ली हैं जो गंधयुक्त थी और जिनके द्वारा शरीर में वात का प्रकोप हुआ है । जैसे यदि स्वस्थ शरीर में नक्सवोमिका पहुँचा दी जाये तो स्वस्थ शरीर में नवीनता आ जाती है । दूसरी बात यह है कि जिन रोगियों को ऐलोपैथी से लाभ नहीं हुआ है उनके लिए भी नक्सवोमिका अच्छी तथा पहली दवा है । लेकिन यह बात चिकित्सा विज्ञान के विरुद्ध है । हमारे पास इलाज करने के लिए नियम हैं । ऐसे अनेक अवसर या स्थितियाँ हैं जबकि नक्सवोमिका कीजरूरत नहीं होती है तब कोई दूसरी दवा उसी के समान देनी चाहिए । परन्तु ऐसा करने से परिस्थिति नहीं बदलती । यदि चिकित्सक यह कहे - “मुझे
ज्ञात नहीं कि कौन-कौन सी दवाएँ दी जा चुकी हैं ।" क्योंकि नक्सवोमिका न तो पहले से दी गई दवा के विष को शरीर से निकालेगी और न रोग को ही निकाल कर दूर करेगी,
क्योंकि जब तक दवा होम्योपैथिक रीति से लक्षणों के अनुरूप में रोगी को न दी जाए ।
डॉ० हेरिंगे ने ऐसे दो लक्षण दिए हैं । उनमें उन स्वाभाविकताओं के विषय में
बताया गया है—मानसिक दशा और (२) नक्सवोमिका की क्रिया-विधि का सहन न होना।
"अत्यन्त असहनशील, साधारण बातों से भी रोगी चिढ़ जाता है, जरा-सी आहट से डर जाता है, घबड़ा उठता है । उसे अपने पास किसी भी व्यक्ति के रहने से चिढ़ हो
(अ), वह कोई उपयोगी दवा लेना भी बुरा समझता हो (ब), ।” “ऐसे मनुष्य सावधान तथा नियम-संयम से रहने वाले हों तथा जो साधारण सी बात से उत्तेजित हो जाते हों या फिर सबके ऊपर घृणा और द्वेष का भाव रखते हों ।"
यह वर्णन स्नायविक प्रकृति वाले मनुष्यों के लिए है, हमारे यहाँ बहुत-सी औषधियाँ
हैं जिनमें स्नायविक प्रकृति के लोगों के लिए बताया गया है । उदाहरण के लिए-
कैमोमिला, इग्नेशिया, स्टेफिसेग्रिया आदि ।
इसलिए चिकित्सकों का कर्तव्य है कि वे मनुष्य की प्रकृति को ही देखकर चाहे
वह किसी प्रकार से भी स्पष्ट हों, नक्सवोमिका नहीं देनी चाहिए । नक्सवोमिका के संबंध
में एक बात और भी है, यद्यपि उसे अधिक विशिष्ट नहीं कहा जा सकता, जो लोग अधिक
सोचते-विचारते हैं, घर में अधिक समय तक बैठे रहते हैं, इसके साथ ही उन्हें पेट की
शिकायत तथा कब्ज रहती है, ऐसे चित्तभ्रम वाले रोगियों के लिए यह फायदेमंद है ।
अब चिकित्सकों को अन्य बातों की ओर ध्यान देना चाहिए । देखना होगा कि
रोगी साधारण उत्तेजना से मन में उद्वेगजनित भाव के कारण क्रोध या आवेश में आ जाता
है । यदि ऐसा हो तो सर्वप्रथम इस औषधि को मुख्य मानना चाहिए ।
यदि मन में मानसिक उद्वेग की स्थिति निरन्तर बनी रहती है तो हमें आरम, नैट्रम
म्यूर देनी चाहिए, जिससे हमें वास्तव में लक्षण मिल जायें - अर्थात् लक्षण मिलने पर ही
ये औषधियाँ दी जाती हैं । मन की ऐसी स्नायविक लक्षणयुक्त अवस्था देखकर उपयुक्त औषधि का चयन किया जाता है ।
"मलत्याग के लिए बार-बार अपर्याप्त इच्छा या हर बार मलत्याग का प्रयास करने
से थोड़ा-सा मल आता है ।"
इस लक्षण को शुद्ध सुवर्ण के समान कहा जा सकता है । यह लक्षण और भी कुछ औषधियों में पाया जाता है, परन्तु वे स्पष्ट तथा निश्चित रूप से लाभकारी नहीं होतीं । यह कोष्ठवद्धता (कब्ज) के लिए पथ-प्रदर्शक का लक्षण है । इसके लिए नक्सवोमिका दी जानी चाहिए । मेरे निजी अनुभव में तो यह उसी अवस्था में लाभकारी सिद्ध होगी।
25 वर्ष पूर्व डॉ० केरल डनहम ने इसी लक्षण के बारे में लिखा था कि नक्सवोमिका और ब्रायोनिया दोनों औषधियाँ कब्ज के लिए एक समान गुण रखती हैं । परन्तु दोनों के प्रयोग में किसी प्रकार की शंका न हो, अतः बारी-बारी से दोनों का प्रयोग जरूरी है।
इसका कारण यह है कि दोनों औषधियाँ अलग ढंग की हैं । नक्सवोमिका के प्रयोग से
कब्ज में आँतों की अनियमित कमजोरी के कारण बार-बार मलत्याग (अपूर्ण अवस्था में)
होता है, परन्तु ब्रायोनिया में कब्ज आँतों के रस की कमी से होती है । ब्रायोनिया में
मल निकालने के लिए वेग नहीं होता और यदि मल आता है तो उसमें शुष्कता तथा कड़ापन होता है, मानों जला हुआ कोयला हो । ऐसे लक्षण केवल कोष्ठवद्धता में ही नहीं पाए जाते, बल्कि पेचिश में भी मिलते हैं। मल यद्यपि बार-बार आता है और उसमें आँव तथा रक्त होता है परन्तु मल की मात्रा बहुत कम तथा असंतोषजनक होती है । डॉ० पी० पी० वेल्स ने पेचिश में नक्सावोमिका का प्रयोग करने के लिए एक विश्वसनीय लक्षण प्रदर्शित किया है—प्रत्येक बार मलत्याग के थोड़ी देर बाद दर्द में कुछ कमी आ जाती है । ऐसा लक्षण मरकरी में नहीं देखा जाता । इसमें मल निकल जाने या त्याग करने के पश्चात पीड़ा और ऐंठन बराबर बनी रहती है । ऐसी स्थिति में रोगी के मुख से निकलता है कि मलद्वार की नसों में जलन
है, परन्तु इसमें बहुत-थोड़ा अंतर है । अर्थात् रोगी में कब्जियत, पेचिश, अतिसार या
और अन्य किसी प्रकार का कष्ट मौजूद है । यदि मल त्याग की इच्छा बनी रहती है तो
उस स्थिति में हमें नक्स वोमिका देने के बारे में सोचना चाहिए । उस समय यदि अन्य
लक्षण दिखाई न दें हमें दूसरी दवा के बारे में नहीं सोचना चाहिए ।
“समय से पूर्व यदि मासिक-धर्म (रजःस्राव) प्रारम्भ हो जाये, अधिक मात्रा में आये और कुछ दिनों तक स्थायी रहे, इसके साथ ही दूसरी शिकायतें भी शुरू हो जाती हैं, जो रजःस्राव के शेष होने तक बनी रहती हैं ।"
नक्स वोमिका का यह एक ऐसा लक्षण है जिसको कई बार प्रमाणित किया गया है। ऐसी और भी औषधियाँ हैं जिनमें समय से पहले या बड़ी मात्रा में स्राव होने के लक्षण विद्यमान रहते हैं । उनमें से एक कल्केरिया-कार्ब है । परन्तु कल्केरिया-कार्ब के बीमार की प्रकृति नक्स वोमिका वाले से बिल्कुल अलग हैं । मैने पाया है कि जो रोगी नक्सवोमिका लेने की दशा वाले होते हैं वे किसी भी अवस्था में पल्सेटिला या अन्य औषधि को सहन नहीं कर सकते । उदाहरण के लिए यदि किसी रोगी को हरे रंग का साधारण गाढ़ा स्राव आ रहा हो और यदि उसे पल्स दे दिया जाए तो उसका लाभ यह होगा कि मासिक-धर्म समय से कुछ पहले आ जायेगा । ऐसी स्थिति में सीपिया दी जाए । यह स्राव पर अपना पूरा प्रभाव डालती है और स्राव की मात्रा को भी नहीं बढ़ाती है ।
जिन स्थितियों में नक्सवोमिका की जरूरत पड़ती है वह प्रायः उन नवयुवतियों या उन स्त्रियों में दिखाई देती हैं जिनका मासिक-स्राव बन्द होने को हो, तब कई बार मलान्त्र के कष्टों की मौजूदगी भी मिलती है | शूल का सारा दबाब नीचे की ओर होता है, फिर
वह सारी गुदा और कभी-कभी मूत्राशय तक भी फैल जाता है । प्रसव-वेदना बड़ी कष्ट-कर होती है; यह दर्द धीरे-धीरे गुदा तक फैल जाता है । इसके साथ ही मल-त्याग तथा मूत्र-त्याग की इच्छा भी बार-बार होती है | नक्सवोमिका की एक मात्रा देते ही यह सब
कष्ट मिट जाता है।
यदि अधिक रजः आने के साथ-साथ रोगियों को विष्टब्धता भी हो, पाकाशय में भी किसी प्रकार का कष्ट हो, तो विशेष रूप से सुबह के समय तो उसके लिए नक्स
वोमिका देनी चाहिए ।
सुबह के समय सोकर उठते ही (लैके सिस और कैलिम्यूर देनी चाहिए ) बौद्धिक परिश्रम करने के बाद नेट्रम-कार्ब, सिर चकराने पर कैल्केरिया-कार्ब आदि देनी चाहिए । भोजन के बाद एनाकार्डियम तथा विपरीत और शीतल वायु के कारण कष्ट में पल्स दी जाती है।
मैंने तीस वर्ष तक से भी अधिक समय तक चिकित्सा कार्य करके इनसे जो फायदा उठाया है- उसे देखते हुए मुझे लगता है कि उसका अधिक मूल्यांकन कठिन है ।
संभवतः इस बात को कोई कह सकता है कि डॉक्टर एलेन द्वारा संपादित वोनिंघासन की किताब में कुल 28 दवाइयाँ हैं जो मोटे अक्षरों में छापी गई हैं तथा जिनके विषय में कहा गया है कि उनके लक्षण प्रातःकाल वृद्धि प्राप्त करते हैं । इससे यह स्पष्ट नहीं होता है कि किसी एक दवा का चुनाव सरल हो गया है ।
परन्तु यदि हम उन औषधियों को देखें तो संख्या में 38 होंगी । इनमें से आठ दोनों सूचियों में मानी जाती हैं । उन आठ के लक्षण भी विशेष है-शाम के समय इनके असाधारण लक्षण बढ़ जाते हैं । उदाहरण के लिए- रसटाक्स सुबह के समय खाँसी आने
पर कफ निकाल कर साफ करता है, शाम को यही कठोर तथा सूखा हो जाता है ।
इस तरह यह देखा गया है कि अंत में चुनाव की प्रक्रिया ही ठीक है । अब समय, मन, पाकाशय तथा प्रकृति को ध्यान में रखकर नक्स की सभी बढ़ने वाली ऊर्जा को ध्यान में रखें तथा सोचें कि इस औषधि में कितनी विशिष्टता है । वास्तव में जो डॉक्टर केवल निदान संबंधी लक्षणों को देखते हैं-- उनको लक्षणों के घटने या बढ़ने से अधिक लाभ नहीं हो सकता, परन्तु एक बात तो सही है कि वे उनकी उपेक्षा करके, दिखाई देने वाले लक्षणों तथा नियमों से उतना अच्छा कार्य नहीं कर सकते, जितना कि इनका ध्यान रखने से होता है ।
कठिन गर्मी से सारे शरीर में जलन-सी होती है, विशेष रूप से चेहरा आरक्त और गरम रहता है, इतने पर भी रोगी हिल-डुल नहीं सकता है और न वह अपनी देह को खुला रख सकता है । शरीर को थोड़ा-सा खुला रखने पर उसमें कम्पन आ जाता है ।
इस तरह के ज्वर में नक्स वोमिका अधिक उपयोगी है । इस तरह की अवस्था को देखकर डॉ० लिपि का ह्रदय प्रसन्नता से भर जाता है । ज्वर का नामकरण कोई असाधारण बात नहीं है । यह चाहे प्रदाहकारी ज्वर हो या विराम ज्वर अथवा गले में जलन उत्पन्न करने वाला । वात या अन्य कोई स्थानीय कष्ट हो - यदि हमें ऐसे कठिन लक्षण दिखाई दें तो हम बड़े विश्वास के साथ यह औषधि दे सकते हैं और इसका क्या
फल होगा- ऐसा सोचकर निराश नहीं होना चाहिए । मैं इन मूल्यवान लक्षणों को अनेक वर्षों के परिश्रम के बाद सीख पाया हूँ । क्योंकि मैं नियमानुसार रोगी की चिकित्सा करता था और इस बात को अच्छी तरह जानता था कि एकोनाइट तथा बेलोडोना अथवा दोनों को अदल-बदलकर उच्च ताप वाले ज्वर में देना ठीक है ।
इस प्रकार मुझे नए चिकित्सकों के साथ पूरी सहानुभूति है जो गलत शिक्षा प्राप्त करने के बाद गलती कर जाते हैं । परन्तु मैं यहाँ पर यह भी स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि उन लोगों के फायदे के लिए अन्य उपाय भी हैं । अर्थात् लक्षणों को सावधानी के साथ देखा जाय । यह कोई कठिन कार्य नहीं है । यहाँ पर 200 शक्ति (पोटेंसी) के रूप में एक ही दवा दें । उसे अपना काम करने के लिए समय प्रदान करें और दूसरी मात्रा देने से पहले देखें कि पहली की क्या प्रतिक्रिया होती है ।
अल्प-शक्ति की औषधियों को देने से भी रोगी को आराम मिल सकता है, इसके अतिरिक्त अधिक मात्राएँ देने तथा बार-बार देने से भी लाभ हो सकता है । परन्तु कभी कभी औषधि विफल भी हो जाती है । अधिकांश क्षेत्रों में उतना आशाजनक फल नहीं मिलता जितना कि ठीक औषधि की एक ही मात्रा जो कम से कम दी जाय, रोगी को लाभ होता है।
“खाना खाने के बाद (कैलिवाई, नक्स मास), खट्टा स्वाद, भोजन करने के एक
या दो घंटा वाद पेट में भारीपन, इसके साथ ही चित्त में उन्माद की दशा, मुख में लार
आ जाना, अफरा की दशा- जिसके कारण कटि-प्रदेश के वस्त्र ढीले करने पड़ें (लैकेसिस,
कैल्केरिया तथा लाइकोपोडियम) घबराई हुई दशा, भोजन करने के दो तीन घंटे बाद मनको किसी कार्य में नहीं लगाया जा सके । पेट के ऊपरी भाग में अफारा तथा पेट में इस प्रकार का दबाव जैसे पाकाशय में पत्थर रखा हो ।"
उपर्युक्त लक्षण गाइडिंग सिम्पटम्स (Guiding Symptoms) नामक पुस्तक में दिखाए गए हैं । पाकाशय अंगों के शीर्षक वाले भाग में और भी बहुत से लक्षण दिए गए हैं, जिनको देखकर लगता है कि नक्सवोमिका वास्तव में पाकाशय सम्बन्धी कष्ट को दूर करती है । जब तक पाकाशय के उपसर्गों में कोई विचित्र लक्षण न दिखाई दें तब तक वास्तव में किन्हीं विशिष्ट बातों का वर्णन नहीं किया जा सकता।नक्स मस्केटा और कैलिबाई क्रोम लेने पर खाना खाने के तुरन्त बाद पेट फूल जाता है । पेट में पत्थर की तरह दबाव ब्रायोनिया तथा पल्सेटिला से भी आ जाता है। पाकाशय, यकृत तथा पेट संबंधी दूसरी शिकायतों पर भी विशेष बल दिया जाता है, जिसके लिए नक्स वोमिका एक विख्यात दवा है । उदाहरण के लिए मदिरा या काफी पीना, विलासिता के कार्य, इधर-उधर की दवाइयाँ लेना, रोजगार संबंधी चिंताएँ, देर तक बैठे रहना, आराम का जीवन व्यतीत करना, रात को देर तक जागना (काक्युलस, कुप्रम, मेटालिकम, नाइट्रिक एसिड) इस प्रकार यह देखने में आया है कि नक्स वोमिका के कष्ट इन कारणों से उत्पन्न होते हैं जिनका प्रमाण बहुत से रोगियों के रोगों को दूर करने से मिला है।
इन सब लक्षणों के आधार पर एक विषय को समझना अत्यन्त आवश्यक है । यदि मल वाली आँत में लक्षण पता लग जाए तो वह विशेष बात होगी । सिरदर्द और कमर दर्द में नक्स वोमिका का विशेष महत्त्व होता है, जिसकी चर्चा करना विशेष रूप से आवश्यक है ।
सिरदर्द अक्सर यकृत, गुदा आदि की तकलीफों के साथ उत्पन्न हो जाता है। इस रोग के घटने-बढ़ने पर विशेष ध्यान देना चाहिए । दर्द की स्थिति तथा लक्षणों को देखकर दवा का चुनाव करना चाहिए | किस कारण से दर्द बढा है- दिमागी कार्य, मन के कष्ट या क्रोध के कारण । मुक्त वातावरण में (पल्सेटिला के विपरीत) प्रातःकाल उठने पर, भोजन के पश्चात, काफी या शराब के अधिक पीने से पाकाशय में एसिडिटी (खट्टापन), धूप में झुकने से, रोशनी और तेज ध्वनि से, आँखों को झपकाते समय कष्ट में (ब्रायोनिया), खाँसने से, उच्च श्रेणी का विलासपूर्ण जीवन या मसाले वाले खाद्य पदार्थ लेने से, तेज आँधी या मूसलाधार वारिश में, अधिक समय तक दवा का सेवन करने से, हस्तमैथुन से, कब्ज या खूनी बवासीर से । इन सब लक्षणों के साथ-साथ या अलग-अलग होने से सिरदर्द किसी विशेष भाग में ठहरता है, और नहीं भी ।रोगी कभी कहता है कि सिर का दर्द अमुक भाग में हो रहा है और कभी दूसरे भाग में दर्द की शिकायत करता है तथा कभी इशारा देता है कि दर्द किसी विशेष भाग में नहीं है, या फिर वह कहता है कि दर्द से सारा सिर फटा जा रहा है । पीठ या कटि की पीड़ा बड़ी अनोखी होती है । यह कष्ट रोगी को बिछौने में ही होती है । उसे उठकर बैठने या करवट बदलने में बड़ा कष्ट होता है । जब वह करवट बदलता है या शरीर को सिकोड़ता है या खड़ा होता है तो दर्द बढ़ जाता है । (सल्फर)।
(बैठे रहने पर दर्द का बढ़ जाना— (कोबाल्ट, पल्सेटिला, रसटाक्स , जिंकम) बैठने पर
अधिक पीड़ा होने पर- (कोबाल्ट) बैठे रहने पर दर्द बढ़ जाने के समय (स्टेफिसेग्रिया-
रात्रि को सोने से पूर्व), ऐसी दशा में नक्स वोमिका ही सबसे उत्तम दवा है । इस दशा में मेरुदण्ड पर नक्सवोमिका की साधारण क्रिया के बारे में बता देना भी आवश्यक है । इसे अन्दर कार्य करने वाली नाड़ियों तथा अनुभव के केन्द्रों आदि में यदि अधिक तकलीफ है तो ऐसी दशा में भी ये दवा उपयोगी है । इसलिए यदि यहाँ पर नक्स वोमिका को छोड़ दिया जाय तथा दूसरी दवाइयों की तुलना के बारे में वर्णन किया जाए । ऊपर हमने जो कुछ वर्णन किया है उसका सारांश यह है कि इस महत्त्वपूर्ण दवा की उपयोगिता के प्रभाग को हमने अधिक बढ़ा-चढ़ाकर नहीं लिखा है । यहाँ पर हमारा उद्देश्य यह नहीं है कि इस दवा के बारे में अधिक विस्तार से लिखा जाय, किन्तु ऐसी बातें बताई जाएं जिससे इसके विशेष गुण, लक्षण सही ढंग से प्रकट हों। इस दवा के बारे में यदि पूरा विवरण दिया जाये तो एक विशाल मैटेरिया मेडिका तैयार हो जायेगी । प्रत्येक चिकित्सक के पास प्रायः दो तरह के रोगी आते हैं । एक प्रकार के वे रोगी होते हैं उनके लिए स्वाभाविक और निश्चित सफलता के साथ विशेष लक्षणों के आधार पर दवा चुनी जा सकती है (आर्गेन सूत्र 135) । दूसरे प्रकार के रोगी पर ऐसे लक्षण दिखाई नहीं देते हैं । उस समय केवल एक ही मार्ग रह जाता है - अर्थात् रोग निदान का पता लगाकर रोग की खोज की जाय, जिसे रोगी की आदि से अंत तक की स्थिति पर विचार करना कहते हैं । अधिकतर ऐसे रोगी अधिक आते हैं जिनमें कुछ न कुछ स्वाभाविक लक्षण या पथदर्शक के लक्षण देखे जाते हैं और वे किसी ऐसी दवा से उपचार करने की ओर निर्देश देते हैं जिनसे समूचे रोग की चिकित्सा की जा सके ।