अमरूद एक चमत्कारी फल है जानिए इसके खाने से क्या फायदे हो सकते हैं


अमरुद पाचन शक्ति ठीक करने वाला वीर्यवर्धक फल है। इसका प्रयोग सामान्य फल के रूप में तो किया ही जाता है, इसके साथ ही इसके पत्ते, फूल, बीज तथा अन्य भागों का उपयोग आयुर्वेदिक औषधियों के निर्माण में किया जाता है। कई मायनों में अमरुद सभी फलों में श्रेष्ठ फल है। यही कारण है कि इसे अमृत फल का नाम दिया गया है।

आयुर्वेद के अनुसार वात रोग क्या होते हैं और उनका क्या उपचार है ?


आयुर्वेद के मतानुसार रोगों के प्रमुख 
कारण तीन दोष होते हैं। वात-पित्त और कफ।
इनमें कोई भी दोष जब घट या बढ़ जाता है तो हं
शरीर में रोग हो जाता है और जब ये तीनों समान
अवस्था में रहते हैं तो शरीर निरोग रहता है। इन
तीनों में पित्त और कफ दोष तो वास्तव में लंगड़े 
हैं । वात दोष की प्ररेणा से ही ये रोग उत्पन्न करते
हैं इससे सिद्ध हुआ कि वात दोष इनमें प्रधान है।
वात को ही साधारण बोलचाल में बाय कहा जाता
है। इसके कारण होने वाले रोग शास्त्र में 80 माने
हैं जिसमें से कुछ प्रमुख रोगों का ही यहां वर्णन
किया जा रहा है।

अनंतमूल या इंडियन सरसापायरिल्ला

5. अनंतमूल

(इंडियन सरसापारिल्ला)

औषधीय गुण

अनंतमूल की जड़ों को सुखाकर औषधि में प्रयोग करते हैं।

यह औषधि ज्वर, त्वचा रोग, भूख न लगना, आतशक, श्वेत प्रदर तथा मूत्र रोगों में लाभदायक है। इसका मूत्रल गुण परीक्षणों द्वारा सिद्ध हुआ है। यह औषधि रक्त को शुद्ध करने के लिए तथा गठिया में बहुत प्रयोग होती है।

अस्पतालों में रोगियों पर किए गए परीक्षणों द्वारा इस बात की पुष्टि की गई है कि अनंतमूल स्मीलाक्स के पौधों से प्राप्त औषधि के स्थान पर भली भांति प्रयोग की

जा सकती है।

अन्य उपयोग

अतीस या एकोनाइट या अकोनाईट

4. अतीस

(एकोनाइट)

आकोनीटुम जाति

अकोनाइट (कुल- रैननकुलेसिए) एक सुपरिचित वनौषधि है। इसके प्रकंद विषैले

होते हैं, किंतु नियमित मात्रा में सेवन करने से इनमें औषधीय गुण होते हैं। ब्रिटेन में

आकोनीटुम फेरॉक्स (Aconitum ferox Ser. (बच्छनाग काला)) मान्य औषधि है।

यह जाति तो भारत में नहीं होती, किंतु इसके वंश की अन्य जातियां पाई जाती हैं, जो

उतनी ही उपयोगी हैं। इनमें से दो का वर्णन नीचे किया गया है।

अतीस (वैज्ञानिक नाम : आकोनीटुम हेटेरोफील्लुम Aconitum heterophyllum

all. कश्मीरी-अतीस, अतिविष, पोदिस)।

अडूसा वासक या वासा

3. अडूसा

(वासक)

औषधीय गुण

अडूसा के सुखाए हुए पत्ते औषधि में काम आते हैं।

पत्तों में वासीसीन नामक एल्केलाइड तथा वाष्पशील तेल होता है। अडूसा

प्रधानतः अपने कफ निस्सारक गुण के कारण प्रसिद्ध है। इसका शरबत, रस या अर्क

प्रयोग होता है। इसके सेवन से बलगम या कफ पतला होकर सुविधा से निकल जाता

है। इस कारण यह खांसी, बलगम, दमा तथा श्वास नली की सूजन (ब्रोंकाइटिस) में

लाभप्रद है।

अडूसा में कफ निस्सारक गुण इसलिए है क्योंकि यह श्वास नली की ग्रंथियों को

उत्तेजित करती है; किंतु अधिक मात्रा में सेवन करने से यह हानिकारक है और इससे

अनंतमूल या टिलोफोर

2. अंतमूल
(टिलोफोरा)
औषधीय गुण
पौधों की जड़ों को सुखाकर औषधि में प्रयोग करते हैं।
अंतमूल को ईपकाक के स्थान पर भली भांति प्रयोग कर सकते हैं। इस कारण
यह पेचिश की चिकित्सा में विशेष लाभप्रद है। जड़ों का क्वाथ दमा और श्वास नली
की सूजन में दिया जाता है। इसके सेवन से कै (वमन) हो जाती है और खांसी में
शांति पड़ जाती है।
अन्य सूचना
अंतमूल नाड़ी तंत्र रोगों में भी उपयोगी बताया गया है।
अन्य नाम
वैज्ञानिक (लेटिन) नाम, कुल, अन्य नाम तथा विवरण
वैज्ञानिक नाम : टिलोफोरा इंडिका [Tylophora indica (Burm f.)Merr.]

बेलाडोना या अंगूर शफा

1. अंगूरशफा

(बेल्लाडोन्ना)

औषधीय गुण

पौधे की जड़ों को छोड़कर अन्य सभी भाग सुखाकर औषधि में प्रयोग होते हैं, ये

बेल्लाडोन्ना कहलाते हैं। कुल क्षारीय तत्त्व पौधे के विकास की बढ़ोतरी (अर्थात् आयु)

पर निर्भर करते हैं। जब फूल खिले हुए हों उस समय कम तथा हरे फलों से युक्त होने

पर बहुत अधिक होते हैं। जड़ें भी औषधि में शामिल की जाती हैं।

पत्तों तथा भूमि के ऊपर के अन्य अंगों से प्राप्त औषधि पसीना बनने की क्रिया

को मंद करती है। यह आमाशय की तथा मुंह से लार पैदा करने वाली ग्रंथियों की