Skip to main content

बहुत काम का है अरंडी का पौधा जिससे कास्टर ऑयल प्लांट जाता है

अरंडी
(कैस्टर ऑयल)
औषधीय गुण
पौधे के बीज का तेल औषधि में काम आता है। स्वयं तो बीज विषैले होते हैं और दो-तीन बीज भी घातक हो जाते हैं।
बीज का तेल, जिसे अरंडी का तेल (या कैस्टर ऑयल; अपभ्रंश कास्ट्रैल) कहते हैं, तीव्र रेचक होता है। यह दूध या फलों के रस के साथ लिया जाता है। अरंडी का तेल आंख में डालने की औषधियों में तथा त्वचा पर ठंडक पहुंचाने के लिए कुछ मरहमों में मिलाया जाता है।
प्रसव की सुविधा के लिए इस तेल का उपयोग बहुत उपयुक्त नहीं है, बल्कि जहां तक संभव हो, इस तेल का रेचक के रूप में भी प्रयोग रजोधर्म के समय तथा गर्भवती स्त्रियों को नहीं करना चाहिए।
अरंडी का तेल गर्भनिरोधी (कंट्रासेप्टिव) जैली व क्रीम आदि बनाने के काम आता है।
(बस्तर के आदिवासी अरंडी के पत्तों को शरीर के दुखते हुए ‘जोड़ों' पर मलते हैं। वे नये पत्तों को पीसकर रेचक के रूप में प्रयोग करते हैं।)
अरंडी के तेल से निर्मित श्लेष त्वचा-शोध के लिए उपयोगी होता है तथा यह एग्जिमा या अन्य त्वचा रोगों का अच्छा रोधक भी है।
शोध/परीक्षण तथा अन्य सूचना
इस पौधे का प्रायः कुछ अन्य पौधों के साथ मिश्रण से आधुनिक यंत्रों द्वारा बनी
औषधियों का नवीनतम विधियों से औषधालयों में अनेक रोगियों पर सफल परीक्षण किया गया।
अरंडी का तेल मुंह की झिल्ली को स्वस्थ रखने में उपयोगी पाया गया है।
यह पौधा नाणी तंत्र हेतु बलकारक, भ्रामक तथा वातशूल में उपयोगी बताया गया है।
अफ्रीका में इस पौधे के मूल व बीज का कामला व कुष्ठ रोग हेतु उल्लेख है।

वैज्ञानिक (लैटिन) नाम, कुल, अन्य नाम तथा विवरण
वैज्ञानिक नाम : रीसीनुस कोम्मूनिस (Ricinus communis L.)
(कुल- एउफोर्बिएसिए)
संस्कृत- एरंड
असमिया- भैरांडा
उड़िया- जड़ा
कन्नड़-हरलू
अन्य नाम

गुजराती-दिवेली, एरडियू
तमिल-आमनक्कम
बंगला- रेड़ी, गांव भेरेंडा
तेलुगू- एरंडमु
मराठी- अरंडी
मलयालम-आवणक्क
(किस्तना (आंध्र)- आमदम, पेड्डा आमदम)
अरंडी की भिन्न किस्मों को कभी-कभी पृथक् नाम भी दिए जाते हैं, जैसे सफेद बीज वाली किस्म को भटरेंडी, पीले बीज वाली किस्म को जोगिया रेंडी।
पुरानी पुस्तकों में इस पौधे को चित्रवीज, पंचागुल एवं वातारि नाम दिए गए हैं।
चित्रबीज इसलिए कहा गया है, क्योंकि बीज का रंग सुंदर चित्तिदार-सा होता है।पंचागुल का आशय हस्ताकार, पांच शिरा वाले पत्तों से है। वातारि अर्थात् वात का अरि; वायुरोग या गठिया का शत्रु।
वर्णन
यह एक झाड़ीनुमा अथवा कभी-कभी वृक्ष सरीखा पौधा होता है। इसके पत्ते बड़े,चौड़े, सात अथवा नौ पालियों में कटे, किनारों पर दंतुर होते हैं। फूल बड़े होते हैं और शीर्ष पर लगे लंबे, गुच्छों में आते हैं। फल एक संपुटिका होती है, इस पर कांटे होते हैं। बीज दीर्घायत होते हैं, उनका छिलका पपड़ी जैसा होता है। अरंडी की एक किस्म बहुवर्षी एवं वृक्ष जैसी होती है, उसके बीज लाल और बड़े होते हैं; इसका तेल केवल जलाने या मशीनों के पुर्जों में लगाने के लिए उपयुक्त होता है। दूसरी किस्म एकवर्षी होती है। उसके बीज भूरे चित्तिदार होते हैं। इनका तेल औषधि के लिए उपयुक्त होता है। एक अन्य किस्म के पत्ते बैगनी, लाल-से रंग के होते हैं; यह केवल उद्यानों आदि में शोभा के लिए लगाई जाती है।
प्राप्ति-स्थान
अरंडी का पौधा खेतों की मेड़ों पर व उद्यानों आदि में बहुत लगाया जाता है। यह जंगली भी हो जाता है। प्रायः बस्तियों के आसपास अथवा बेकार स्थानों में उग आता है।