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इंद्र जौ

 इंद्रजौ
(कुरची)
दृक्ष की छाल सुखाकर औषधि के काम आती है। इस औषधि का मुख्य उपयोग
औषधीय गुण
अमीबा पेचिश में होता है। छाल का क्वाथ बनाकर प्रयोग किया जाता है अथवा
उसमें कुछ अन्य औषधियां मिलाकर सेवन किया जाता है। छाल में पौष्टिक और
ज्वरनाशक गुण भी हैं। छाल में 'कोनेसीन' नामक एक एल्केलाइड होता है, जो क्षय रोग के जीवाणुओं (टुबरकुलर बेसिलाई) की बढ़ोतरी कम कर देता है।
इंद्रजी के बीजों में भी कुछ ऐसे एल्केलाइड हैं जो पेचिश में लाभप्रद हैं। पत्तों में औषधीय गुण बताए जाते हैं।
शोध परीक्षण तथा अन्य सूचना इस पौधे का प्रायः कुछ अन्य पौधों के साथ मिश्रण से आधुनिक यंत्रों द्वारा बनी
औषधियों का नवीनतम विधियों से औषधालयों में अनेक रोगियों पर सफल परीक्षण किया गया। यह पौधा चेहरे पर फुंसी(पिडिका) में उपयोगी है।
इंद्र जौ में मादक गुण बताए गए हैं तथा यह मूर्छा में उपयोगी तथा स्मरण-शक्ति
बढ़ाता है।
भारत के कई प्रांतों में विभिन्न जनजातियां इस पौधे के तने की छाल तथा
ब्ले, ज्वेत कुष्ठ हेतु प्रयोग करते हैं। अतः इस पर नियमित शोध उपयोगी हो
अन्य उपयोग
अनुपजाऊ भूमि पर उगाने के लिए यह वृक्ष अच्छा है। कटान किए हुए जंगलों में तो वह स्वयं ही उग आता है और प्रायः सर्वप्रथम उग आने वाले पौधों में से है। इसकी
लकड़ी नाना प्रकार की घरेलू वस्तुएं जैसे खिलौने, छोटे संदूक, डिब्बे, कलम, कंघी
तथा ठपाई के ब्लॉक, तस्वीरों के फ्रेम आदि बनाने के लिए उपयुक्त है।
वैज्ञानिक (लैटिन नाम, कुल, अन्य नाम तथा विवरण
वैज्ञानिक नाम: होलरहना आंटीडीसेंटेरिका [Holarrhena antidysenterica
(Roth) A. DC)]
(कुल-अपोसाइनेसिए)
: हिंदी-कोड़ई, कुरची
संस्कृत-कुटज, कालिंग
अन्य नाम
असमिया- दुतखुरी
उड़िया-खुरनी, खेड़वा
कन्नड़-हाले, कोडच्चगा
गुजराती-कुड़ा
तमिल-इंद्रबन
तेलुगू- पालाकोडसा
पंजाबी-केवाड़
मराठी- गाल, कोड़या, दुधारी
मलयालम-कोडगप्पाले
इस पौधे के वैज्ञानिक नाम में आंटीडीसेंटेरिका' शब्द इसके मुख्य औषधीय गुण
पर आधारित है।
वर्णन
यह एक बड़ा झाड़ीनुमा पौधा अथवा छोटा वृक्ष होता है। कभी-कभी यह 10 मी. तक
ऊंचा हो जाता है। इसके पत्ते 10-30 सेमी. लंबे, अंडाकार व पतले होते हैं। शिराएं
उभरी हुई होती हैं और स्पष्ट चमकती हैं। पत्तों के डंठल छोटे होते हैं।
सुगंधित, 1-1.5 सेमी. व्यास के होते हैं। यह शाखाओं के शीर्ष पर लगे बड़े गुच्छों में
आते हैं। फलियां 20-45 सेमी. लंबी, केवल 6-8 मिमी. मोटी होती हैं, उनका रंग फूल सफेद, गहरा भूरा होता है और इन पर सफेद दाने-से होते हैं। बीज लगभग एक सेमी. लंबे होते हैं। उनके शीर्ष पर 2-2.5 सेमी. लंबा, भूरा रोमगुच्छ होता है। पौधे के किसी भी भाग को काटने पर दूध-सा सफेद रस निकलता है।
प्राप्ति-स्थान
इंद्रजौ के पौधे 1,200 मी. ऊंचाई तक के स्थानों में लगभग समस्त भारत में मिलते हैं। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के वनों में प्रायः खले स्थानों में या ऊंचे वक्षों के नीचे सहस्रों पौधे देखे गए हैं।