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आंवला

आंवला
(एंबलिक-माइरोबलान)
औषधीय गुण
वृक्ष के ताजे या सुखाए हुए फल ही औषधि में काम आते हैं।
आंवला भारत की प्रसिद्ध औषधि त्रिफला में मिलाने वाले तीन फलों में से एक है (अन्य दो हैं, हर्रा और बहेड़ा)। 'त्रिफला' रेचक होता है और जिगर बढ़ जाने पर बवासीर में, नेत्र रोगों में तथा उदर विकारों में उपयोगी है। आंवले के फल जिगर के
लिए पौष्टिक होते हैं। कच्चे फल शीतल और मूदुरेचक होते हैं। फलों से बना सिरका अपच, रक्तक्षीणता, पीलिया, कुछ प्रकार के हृदय रोग तथा जुकाम में उपयोगी होता है। यह मूत्रल भी है। विटामिन 'सी' की कमी से होने वाले रोगों (जैसे स्कर्वी) में
आंवला अत्यंत लाभप्रद है।
फेफड़ों के क्षय रोग या तपेदिक के कुछ रोगियों पर जो परीक्षण किए गए हैं,
उनसे सिद्ध हुआ है कि आंवले से प्राप्त विटामिन 'सी' कैमिकल से बनाए विटामिन 'सी' की अपेक्षा शरीर में अधिक सुविधा से पच जाता है। इससे प्रतीत होता है कि आंवले में कुछ अन्य उपयोगी किंतु अज्ञात तत्त्व भी हैं।
आंवले के सूखे फल अतिसार एवं पेचिश में उपयोगी हैं। आंवले का मुरब्बा भी औषधि के रूप में प्रयुक्त होता है।
आंवले के फूल, जड़, एवं छाल में भी कुछ औषधीय गुण बताए जाते हैं। इसके बीज दमा एवं उदर के रोगों में लाभप्रद बताए गए हैं।
शोध/परीक्षण तथा अन्य सूचना
इस पौधे का प्रायः कुछ अन्य पौधों के साथ मिश्रण से आधुनिक यंत्रों द्वारा बनी औषधियों का नवीनतम विधियों से औषधालयों में अनेक रोगियों पर सफल परीक्षण किया गया।
इसके फल अंतड़ियों तथा वाईरल कामला के विकारों में उपयोगी है। इनसे कोलेस्ट्रॉल कम होता है
भारत के कई प्रांतों में विभिन्न जनजातियां इस पौधे के फल व पत्ते मधुमेह हेतु प्रयोग करते हैं। अतः इस पर नियमित शोध उपयोगी हो सकता है।
अन्य उपयोग
आंवले के फल रोशनाई (स्याही), रंग, केश धोने के मसाले तथा तेल बनाने के काम
आते हैं। फल और टहनियों की छाल में टैनीन होते हैं, जो चमड़ा बनाने व रंगने के
काम आते हैं।
आंवले की लकड़ी विविध घरेलू वस्तुएं बनाने के काम आती है। यह पानी में
शीघ्र नहीं गलती, इसलिए यह कुएं की चौखट आदि बनाने के काम आती है।
आंवले के पत्ते इलायची के खेतों में खाद के लिए अच्छे समझे जाते हैं; पत्तों की
खाद एल्कली भूमि के सुधार के लिए भी उपयोगी है।
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वैज्ञानिक (लैटिन) नाम, कुल, अन्य नाम तथा विवरण
वैज्ञानिक नाम : फील्लांयुस एंवलिका (Phyllanthus emblica L.)
(अस्वीकृत नाम : एंबलिका ऑफ्फीसिनालिस Emblicaofficinalis)
(कुल- एउफोर्बिएसिए)
: संस्कृत-आम्लिका
अन्य नाम
असमिया- चुकना आमलकी
उड़िया- आवड़ा
कन्नड़-नेल्लिकाई
गुजराती- आमडां, राज्य आमलां
तमिल-नेल्लिक्कई
बंगला-आमलोकी
मराठी-आमला
मलयालम-आमलकं, नेल्ली।
बहुत छोटे 10-13
वर्णन
आंवले का वृक्ष छोटा या मझोला व पतझड़ी होता है। इसके पत्ते
मिमी. लंबे, 2-3 मिमी. चौड़े, बहुत पास-पास लगे होते हैं, इस कारण शाखाएं पंख
जैसी दिखती हैं। नर व मादा पुष्प एक ही वृक्ष पर लगते हैं। फूल केलई रंग के और
प्रायः पत्तों के नीचे की ओर छोटे गुच्छों में लगते हैं। नर पुष्प छोटे, अनेक तथा छोटे से चूत पर लगे होते हैं। मादा पुष्प संख्या में कम होते हैं। फल 1.5-3 सेमी. व्यास केहरे, सरस व गोल होते हैं, उन पर हल्के रंग की धारियां-सी होती हैं। फल में छह बीज होते हैं। आंवले के रोपण किए हुए वृक्षों पर अधिक बड़े फल आते हैं।
प्राप्ति-स्थान
आंवले के वृक्ष समस्त मैदानी और तलहटी प्रदेश में होते हैं। मध्य प्रदेश के वनों में
आंवले के सहस्रों वृक्ष पाए जाते हैं। इनमें से अधिकांश के फल नष्ट होते हैं। वनवासी इन्हें प्रायः प्रयोग में नहीं लाते।