स्वस्थ और सुंदर बनाता है योग ?

स्वास्थ्य एवं सौन्दर्य सुरक्षा में योग का
महत्त्व-
योग द्वारा शरीर के समस्त अंग प्रत्यंग सुचारू
ढंग से कार्य करते हैं। वे सशक्त तथा सुदृढ़ होते
हैं। योग आसनों से स्नायुबन्ध (लिगमेन्ट्स) रीढ़
की हड्डी की स्रायु माँसपेशियाँ, धमनियाँ तथा
शिराएँ लचीले सशक्त एवं सुदृढ़ होते हैं । संधियों,
स्रायु तथा धमनियों को कठोर बनाने वाले तत्त्व,
कॉलेस्ट्रॉल (एल. डी. एल.) यूरिक एसिड आदि
नियंत्रित होते हैं। ऐच्छिक मांसपेशियाँ, अस्थिसंधियाँ
विशेष रूप से हाथ, पैर, छाती व कन्धे की
मांसपेशियाँ समानुपात में विकसित होकर उन्हें

एब्रोटेनम ( Abrotanum)

एब्रोटेनम

( Abrotanum)

[एक तरहकी लता के पत्तों का टिंचर]-कन्ध, हाथ, कलाई और

एड़ी में दर्द, गाँठे कड़ी, जकड़ी, वातके कारण दर्द ( फार्मिका ), शरीर काँपना,

निराशा, काम-काजले अनिच्छा, नींद न आना, पर्यायक्रमसे वात और बवासीर,

आमाशय (पेचिश), बहुत कमजोरीके साथ हेक्टिकज्वर (क्षय-ज्वर), बच्चोंका

एक तरहका हेक्टिक-ज्वर ( इन्फ्लुएञ्जाके बाद), मेटेसटेसिस (किसी रोगका

एक अङ्गसे दूसरेमें चला जाना ), बच्चोंका मैरास्मस (सुखण्डी : marasmus )

इत्यादि में इसका प्रयोग होता है, और ये ही इसके चरित्रगत लक्षण है। डॉ.

एस्प्रिन Asprin

एस्प्रिन दुनिया की सबसे पहली ड्रग है जो पौधे से सिंथेसाइज्ड की गई थी एस्प्रिन का नाम ऐसीटाइल सैलिसिलिक एसिड है यह है व्हाइट विलो नामक पौधे की छाल से निकाला गया था। व्हाइट विलो पौधे की छाल का प्रयोग प्राचीन यूरोप ,चीन सीरिया व मिस्र में दर्द निवारक व बुखार को कम करने के लिए सदियों से प्रयोग किया जाता रहा था। इसके उपयोगों के बारे में हिप्पोक्रेट्स ने भी बताया है।

अनंतमूल या इंडियन सरसापायरिल्ला

5. अनंतमूल

(इंडियन सरसापारिल्ला)

औषधीय गुण

अनंतमूल की जड़ों को सुखाकर औषधि में प्रयोग करते हैं।

यह औषधि ज्वर, त्वचा रोग, भूख न लगना, आतशक, श्वेत प्रदर तथा मूत्र रोगों में लाभदायक है। इसका मूत्रल गुण परीक्षणों द्वारा सिद्ध हुआ है। यह औषधि रक्त को शुद्ध करने के लिए तथा गठिया में बहुत प्रयोग होती है।

अस्पतालों में रोगियों पर किए गए परीक्षणों द्वारा इस बात की पुष्टि की गई है कि अनंतमूल स्मीलाक्स के पौधों से प्राप्त औषधि के स्थान पर भली भांति प्रयोग की

जा सकती है।

अन्य उपयोग

अतीस या एकोनाइट या अकोनाईट

4. अतीस

(एकोनाइट)

आकोनीटुम जाति

अकोनाइट (कुल- रैननकुलेसिए) एक सुपरिचित वनौषधि है। इसके प्रकंद विषैले

होते हैं, किंतु नियमित मात्रा में सेवन करने से इनमें औषधीय गुण होते हैं। ब्रिटेन में

आकोनीटुम फेरॉक्स (Aconitum ferox Ser. (बच्छनाग काला)) मान्य औषधि है।

यह जाति तो भारत में नहीं होती, किंतु इसके वंश की अन्य जातियां पाई जाती हैं, जो

उतनी ही उपयोगी हैं। इनमें से दो का वर्णन नीचे किया गया है।

अतीस (वैज्ञानिक नाम : आकोनीटुम हेटेरोफील्लुम Aconitum heterophyllum

all. कश्मीरी-अतीस, अतिविष, पोदिस)।

एबिस नाइग्रा Abies Nigra

एबिस नाइग्रा

( Abies Nigra

विभिन्न रोगावस्थाओं में जब भी आमाशयिक चारित्रगत लक्षण मिलें तो यह औषधि

प्रभावशाली एवं दीर्घक्रिया करती है। अधिकांश लक्षण पाचन-क्रिया सम्बन्धी दोषों से

सम्ब) रहते हैं। वृद्ध व्यक्तियों में मन्दाग्नि (dyspepsia) की शिकायतें, हृदय के क्रियात्मक

लक्षणों (functional symptoms) का मिलना अथवा चाय, तम्बाकू से भी मन्दाग्नि

(dyspepsia) की शिकायत होना। कब्जियत (constipation) रहना बाहरी छिद्रों में दर्द ।

सिर-तमतमाये लाल गालों के साथ गरम सिर रहना। हतोत्साहित। दिन में सुस्ती,

अडूसा वासक या वासा

3. अडूसा

(वासक)

औषधीय गुण

अडूसा के सुखाए हुए पत्ते औषधि में काम आते हैं।

पत्तों में वासीसीन नामक एल्केलाइड तथा वाष्पशील तेल होता है। अडूसा

प्रधानतः अपने कफ निस्सारक गुण के कारण प्रसिद्ध है। इसका शरबत, रस या अर्क

प्रयोग होता है। इसके सेवन से बलगम या कफ पतला होकर सुविधा से निकल जाता

है। इस कारण यह खांसी, बलगम, दमा तथा श्वास नली की सूजन (ब्रोंकाइटिस) में

लाभप्रद है।

अडूसा में कफ निस्सारक गुण इसलिए है क्योंकि यह श्वास नली की ग्रंथियों को

उत्तेजित करती है; किंतु अधिक मात्रा में सेवन करने से यह हानिकारक है और इससे

अनंतमूल या टिलोफोर

2. अंतमूल
(टिलोफोरा)
औषधीय गुण
पौधों की जड़ों को सुखाकर औषधि में प्रयोग करते हैं।
अंतमूल को ईपकाक के स्थान पर भली भांति प्रयोग कर सकते हैं। इस कारण
यह पेचिश की चिकित्सा में विशेष लाभप्रद है। जड़ों का क्वाथ दमा और श्वास नली
की सूजन में दिया जाता है। इसके सेवन से कै (वमन) हो जाती है और खांसी में
शांति पड़ जाती है।
अन्य सूचना
अंतमूल नाड़ी तंत्र रोगों में भी उपयोगी बताया गया है।
अन्य नाम
वैज्ञानिक (लेटिन) नाम, कुल, अन्य नाम तथा विवरण
वैज्ञानिक नाम : टिलोफोरा इंडिका [Tylophora indica (Burm f.)Merr.]

प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति क्या है ?

ऐसी चिकित्सा पद्धति जिसमें धूप हवा पानी, भोजन जैसी प्राकृतिक वस्तुओं का प्रयोग कर इलाज किया जाता है प्राकृतिक चिकित्सा कहलाती है। प्राकृतिक चिकित्सा में मुख्य जोर हमारे भोजन के सुधार व दिनचर्या के सुधार पर रहता है भोजन में फल सब्जियों का प्रयोग अधिक कराया जाता है तथा दिनचर्या में सुधार के लिए योग प्राणायाम ध्यान जैसे साधनों का भी उपयोग किया जाता है प्राकृतिक चिकित्सा के साथ आयुर्वेद, न्यूट्रिशन, एक्यूप्रेशर, रंग चिकित्सा, रेकी इत्यादि को भी शामिल किया जा सकता है प्राकृतिक चिकित्सा के साथ हमें इनकी मुख्य चिकित्सा की तरह नहीं बल्कि प्राकृतिक चिकित्सा में सहायक की तरह इनकी भूमिका होती है।

होम्योपैथी क्या है ?


होमियोपैथी क्या है ?
किसीके भी स्वस्थ शरीर में, किसी एक दवाका बार-बार प्रयोग करते
रहनेपर, दवाके लक्षणों-सा उत्पन्न कितने ही रोग-सदृश्य लक्षण प्रकट हुआ करते
हैं। यदि किसी बीमारी में वे सब लक्षण प्रकट हों, तो उस रोगमें उसी दवाकी
सूक्ष्म मात्राका प्रयोग कर जो चिकित्सा की जाती है, उसे ही होमियोपेथी या
'सदृश-विधान चिकित्सा' कहते हैं।
इस चिकित्सा की नींव महात्मा सैमुएल हैनिमैन ने डाली थी। वे जर्मनीके
एक कीर्तिप्राप्त उच्च-पदवीधारी ऐलोपैथिक डॉक्टर थे। वे कितने ही प्रधान-